बचपन में पढ़ा था कि भारत
एक कृषि प्रधान देश है। अब इस उम्र में आकर प्रतीत होता है, भारत कृषि के साथ साथ पर्व प्रधान देश भी है।
आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
है। कल से
घर के बच्चे जन्माष्टमी की झाँकी की तैयारी में
लगे थे। कुछ पैसा हमसे लिया,कुछ अपनी दादी,चाची,चाचा ,मम्मी से लिया बाकी आपस मे कंट्रीब्यूट कर झाँकी का खर्च जुटा ही
लिया।
अभी तैयारी चल रही है। आजकल सबकुछ रेडीमेड मिलता है। मुझे लगता है, घण्टे भर से कम समय मे
इनकी झाँकी सज जाएगी।
सब खुश हैं, पनीर,खीर का भोग आपकी भतीजियों ने खुद तैयार किया है। मेरे आग्रह पर घर की मुखिया
माताजी ने मूँगफली के दाने,गरी शक्कर में जमाकर कतली
तैयार कर दी है।
संयुक्त परिवार में छोटे बड़े मिलाकर 9 सदस्य हैं। सब खुश हैं। सबकी खुशी देख
कर हम भी खुश हैं। यही भारत देश की विशेषता है कि खुशी मनाने का कोई अवसर
नही छोड़ता।
मुझे भी अपना बचपन याद आ गया,जब हम भी एक महीने पहले
से ही हर त्योहार की तैयारी करते थे। टॉफी, कम्पट, चूरन,चोगला, बरफ के लिए मिली चवन्नी
को बचा बचा कर खिलौने खरीद लाते
थे।
उस समय के मिट्टी वाले
खिलौनों में वाकई बस जान की ही कमी होती
थी। हाथी ,घोड़ा, सिपाही,बैलों वाला किसान, चाक चलाता कुम्हार,गर्दन की जगह स्प्रिंग लगे बुड्ढा बुढ़िया इन मूर्तियों में बहुत कॉमन हुआ करते थे।
प्लास्टिक के छोटे छोटे
खिलौनों का मजबूत कलेक्शन हम कर ही लेते थे। इनमे युद्ध लड़ते फौजी,टैंक, कारें, घुड़सवार मुख्यतः होते थे।
इतना सब इकट्ठा करने के
बाद अपन सुबह से अपने दोस्तों के साथ मिशन झाँकी में जुट जाते थे। सबको काम बांट
दिया जाता था।
कोई रेलवे पटरी के किनारे
गिरे हुए खँजड़ कोयले को बोरी में भर कर ले आता था, क्योंकि पहाड़ तो इसी से
बनते थे। पहाड़ की चोटी पर बर्फ जमाने के लिए रुई मोहल्ले के डॉक्टर साहब की क्लिनिक से आती थी। कुछ प्लास्टिक
के सैनिक और जानवर पहाड़ पर सजा दिए
जाते थे।
आरा मशीन से लकड़ी का
बुरादा भी आता था। उसको विभिन्न प्रकार
के रंगों में रंग धूप में सुखा लिया जाता था। मसलन, काला बुरादा सड़क के लिए,हरा बुरादा खेल मैदान और खेत के लिए, भूरा बुरादा युद्ध के मैदान और जुते खेत मे प्रयोग होता था। स्कूल की
किताबों को आस पास रख छन्नी से छानकर
हम सब इस स्ट्रक्चर को तैयार करते थे। आज बच्चा पार्टी इसके लिए थर्माकोल की शीट इस्तेमाल कर रही है।
अब बारी आती थी सूप पर धरे घनश्याम, नदी पार कर रहे वासुदेव और फन का छाता ताने नाग की मिट्टी की मूर्ति की तो, पीतल की परात में पानी भर
काम चल जाता था।
इतनी तैयारी देख मोहल्ले के सभी बच्चे अपने अपने खिलौने लेकर रिकुएस्ट करते थे कि, हमारे भी सजा लो न ! लड़कियां अपनी गुड़िया सजाने की सिफारिश घर भीतर अपनी चाची,ताई से करती थीं। हाईकमान के आदेश को मानना मजबूरी था इसलिए बचे बुरादे को मिक्स कर गुड्डे गुड़िया के लिए फील्ड तैयार हो जाती थी।
इतनी तैयारी देख मोहल्ले के सभी बच्चे अपने अपने खिलौने लेकर रिकुएस्ट करते थे कि, हमारे भी सजा लो न ! लड़कियां अपनी गुड़िया सजाने की सिफारिश घर भीतर अपनी चाची,ताई से करती थीं। हाईकमान के आदेश को मानना मजबूरी था इसलिए बचे बुरादे को मिक्स कर गुड्डे गुड़िया के लिए फील्ड तैयार हो जाती थी।
पिताजी, किराए पर लायी हुई नॉवेल या जन्माष्टमी विशेषांक अखबार को पकड़ अलग
निकल लेते थे।
कुल मिलाकर सार ये है कि
इस फानी दुनिया मे खुश होने का कोई मौका न चूकिए। होली हो,दिवाली हो, लोहड़ी हो ईद हो या क्रिसमस सबको जम कर मनाइए। इस देश की 135 करोड़ आबादी में अधिकतर हम
जैसे मध्यम वर्गीय लोग ही हैं। कुल जनसंख्या के मात्र 5% अमीरों और .05% इंटेलेक्चुअल लोगों को
उनके हाल पर छोड़ दीजिये। उनकी खुशी के
मायने उन्हें खुद ही पता नही है। हमारी तरफ से सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई!
वाह ❤️
ReplyDeleteWhha bhaiya bhut khub
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