बहुत
छोटी सी थी मैं, लगभग साढ़े तीन वर्ष की, घर हमारा शिवाजी पार्क से
मात्र 20 क़दम की दूरी पर है. बहुत बड़े चौराहे को पार करते ही एक बुक स्टॉल था, काफ़ी बड़ा सा.हिंदी, अंग्रेज़ी, मराठी, गुजराती अख़बार, पत्र पत्रिकायें, कॉमिक्स की एक रंग बिरंगी दुनिया थी मानो.
घर में
सबसे छोटी होने की वजह से सबसे लाडली थी मैं, रोज़ पिता की उंगली पकड़ती, और उनके जाने से पहले मैं चप्पल पहन कर तैयार हो जाती.
बाहर निकलते, तो पहला काम होता आइस क्रीम लेने का, तब क्वालिटी की आइस क्रीम प्लास्टिक की गेंदों में आती, ढक्कन षट्कोणीय/ अष्टकोणीय होते, इसी तरह से ऑरेंज टॉफियाँ भी गेंदों में आतीं.
बाहर निकलते, तो पहला काम होता आइस क्रीम लेने का, तब क्वालिटी की आइस क्रीम प्लास्टिक की गेंदों में आती, ढक्कन षट्कोणीय/ अष्टकोणीय होते, इसी तरह से ऑरेंज टॉफियाँ भी गेंदों में आतीं.
मैंने
ख़ज़ाना जमा कर रखा था.
फिर
आगे बढते तो बुक स्टॉल पर जाते. घर पर Times of India और नवभारत टाइम्स नियमित रूप से आते थे, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान, टाइम मैगज़ीन, धर्मयुग, सारिका.
मेरा बाल मन मोहित होता नन्दन, चम्पक, पराग, चन्दामामा, कुमार (मराठी), किशोर (मराठी), अमर चित्र कथा पर.
मेरा बाल मन मोहित होता नन्दन, चम्पक, पराग, चन्दामामा, कुमार (मराठी), किशोर (मराठी), अमर चित्र कथा पर.
मैं ज़िद कर के ख़ूब सारी पत्रिकायें ख़रिदवा लेती, तब तक अक्षर से भेंट नहीं थी, किन्तु रंग बिरंगे चित्र
सम्मोहित करते थे.
घर आती
और बड़े भाई बहनों से चिरौरी करती कि पढ़ कर सुना दो.
दीदी मुझे बड़े ही धैर्य के साथ सब सुनातीं. यह करते करते कब अक्षरज्ञान हुआ याद नहीं. कब ABCD सीखी, कब सीखी बारहखड़ी, वर्णमाला और मराठी का ग म भ न, जिस से मराठी वर्णमाला शुरू होती है, याद ही नहीं.
दीदी मुझे बड़े ही धैर्य के साथ सब सुनातीं. यह करते करते कब अक्षरज्ञान हुआ याद नहीं. कब ABCD सीखी, कब सीखी बारहखड़ी, वर्णमाला और मराठी का ग म भ न, जिस से मराठी वर्णमाला शुरू होती है, याद ही नहीं.
5 वर्ष की उम्र में सीधे
पहली कक्षा में प्रवेश पाया. तब तक उम्र से अधिक जान चुकी थी और गणित को छोड़ किसी
विषय ने दुःखी नही किया.
और बड़ी हुयी तो ख़ुद पढ़ने लगी. राह देखती कि कब नया पराग, नन्दन, चम्पक इत्यादि आयें और में दौड़ कर ताई जी से पैसे लेकर भागती ख़रीदने.
और बड़ी हुयी तो ख़ुद पढ़ने लगी. राह देखती कि कब नया पराग, नन्दन, चम्पक इत्यादि आयें और में दौड़ कर ताई जी से पैसे लेकर भागती ख़रीदने.
कॉमिक्स
में सबसे प्रिय रहा फैंटम. इतना कि फैंटम मेरा पहला प्यार था. मैं उसी दुनिया में खोयी रहती. थे तो मेंड्रेक, लोथार भी, किन्तु फैंटम वाली बात न थी.
में अपने पिता से कहती, चाचा, मैं फैंटम से शादी करूँगी. वे मुझे चिढ़ाते, कि उसकी शादी तो डायना पामर से हो चुकी है, मैं ख़ूब दुःखी हो जाती और सोचती कि यह डायना नहीं डायन है.
में अपने पिता से कहती, चाचा, मैं फैंटम से शादी करूँगी. वे मुझे चिढ़ाते, कि उसकी शादी तो डायना पामर से हो चुकी है, मैं ख़ूब दुःखी हो जाती और सोचती कि यह डायना नहीं डायन है.
धीरे धीरे वक़्त बीता, किताबें मेरी हमराज़, हमक़दम, हमराह, हमनवा बन गयीं.
किशोरावस्था में Mills & Boon, The Famous Five, Faster Fene (मराठी) Agatha Christie, Sherlock Holmes, Fairy Tales और भी बहुत कुछ.
किशोरावस्था में Mills & Boon, The Famous Five, Faster Fene (मराठी) Agatha Christie, Sherlock Holmes, Fairy Tales और भी बहुत कुछ.
माता
की वजह से उत्तम पुस्तकों की विरासत पायी. प्रेमचंद से लेकर बांग्ला साहित्य, और बड़े पिता जी की वजह से रूसी साहित्य पढ़ा.
मेरी
बड़ी दीदी जो भी पढ़तीं, वह मैं भी पढ़तीऔर आत्मसात कर लेती.
उनकी भी छाप स्पष्ट पड़ी.
उनकी भी छाप स्पष्ट पड़ी.
सुयोग
ऐसा रहा कि पढ़ते पढ़ते ही शादी हुयी और ससुराल में पति और सास ससुर तीनों उत्तम
साहित्यिक अभिरुचिसम्पन्न मिले.
यहां
पर मेरे पढ़ने के जुनून को मानो पर मिल गये.
पति ने
परिचय कराया इंग्लिश बेस्ट सेलर्स की दुनिया से. Arthur
Hailey, John Steinbeck, Harold Robbins, Sidney Sheldon, Jeffrey Archer, Danielle
Steel, Nora Roberts, Ken Follett, Dan Brown, Dr. Brian Weiss, David Baldacci,
John Grisham, Dr. James Harriot, J.K.Rowling, Jackie Collins, David Koontz,
Tolstoy, JRR Tolkein, Arthur Hailey, Jacqueline Susanne और भी अनगिनत.
हिंदी
में अब मुझे याद ही नहीं कि मैंने किसी भी ख्यातिप्राप्त लेखक को छोड़ा हो वही हाल
मराठी का है.
बांग्ला, गुजराती, उर्दू, क्षेत्रीय भाषायें सबके
अनुवादित
उपन्यास पढ़े.
कुछ वर्ष पहले हैरी पॉटर की पहली किताब पढ़ी, उसके बाद आख़िरी किताब ख़रीदने लखनऊ यूनिवर्सल के सामने बारिशों में भीगी.
कुछ वर्ष पहले हैरी पॉटर की पहली किताब पढ़ी, उसके बाद आख़िरी किताब ख़रीदने लखनऊ यूनिवर्सल के सामने बारिशों में भीगी.
किताबों
से लगाव जन्मजात होता है, इसे आप अचानक से पैदा
नहीं कर सकते, ज़बरदस्ती करेंगे भी, तो जल्द ऊब जायेंगे.
बच्चों को कोर्स के अलावा
दूसरा साहित्य दें, असल ज़िन्दगी कोर्स की
पुस्तकों से बाहर है.
मुझे
ख़ुशी है कि मेरे माता पिता और सास ससुर ने मुझे कभी पढ़ने से नहीं रोका और मुझे जीवन में सबसे अच्छे मित्र मिले. आज मेरे घर की
लाइब्रेरी में ही कम से कम 2000 पुस्तकें हैं, जिनमें कुछ अलभ्य ग्रंथ
हैं और बहुत कुछ...
कल से
पसंदीदा किताबों की श्रृंखला शुरू करने से पहले,
रीडिंग
हिस्ट्री ...
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