Saturday 24 February 2024

"ओ हमारे प्यारे रेडियो" - देवेन मेवारी

 


आज फिर विश्व रेडियो दिवस ने हमारे इस प्यारे रेडियो की याद ताज़ा कर दी।
चमड़े के भूरे खोल में सजा यह फिलिप्स कमांडर रेडियो ट्रांजिस्टर हमने अपनी शादी के बाद सन् 1969 में समाचार, गीत और बिनाका गीतमाला सुनने के लिए हल्द्वानी, नैनीताल के बाज़ार से खरीदा था। तब मैं पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में नौकरी कर रहा था। घर इसमें बजते गीतों की धीमी आवाज से गूंजता रहता था। राष्ट्रीय समाचारों के अलावा मैं इस पर बीबीसी, वॉयस ऑफ अमेरिका और वॉयस ऑफ जर्मनी के विज्ञान कार्यक्रम और समाचार सुना करता था। तब मन में कहीं रेडियो समाचार वाचक बनने का भी सपना देखता था। एकांत में समाचार पढ़ने का अभ्यास किया करता था।
फिर नौकरी बदलने पर
यह हमारे साथ लखनऊ चला आया। वहां सन् 1984 में घर में टीवी आ गया। उसके बाद रेडियो सुनना धीरे-धीरे कम होता गया। लेकिन, आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाली अपनी विज्ञान वार्ताएं इस पर सुनता रहता था।
साढ़े सात साल बाद फिर नौकरी बदली। लखनऊ से हमारा रेडियो भी हमारे साथ दिल्ली आ गया। दिल्ली में भी इस पर अपनी वार्ताएं और अन्य प्रोग्राम सुनते रहे।
लेकिन, कुछ वर्षों के बाद इसकी तबीयत खराब रहने लगी और आवाज़ धीमी पड़ गई। रोग समझ में नहीं आया। बल्कि, बाहर से तो देखने पर यह बिल्कुल तंदुरुस्त नज़र आता था। हमने काफी दौड़-धूप के बाद सफदरजंग एंक्लेव के निकट अर्जुन नगर की एक गली में किसी तरह रेडियो का एक देसी डॉक्टर खोज निकाला और उसकी सलाह मान कर इलाज के लिए यह उसे सौंप दिया। कई दिन तक फोन पर उससे पूछते रहे कि क्या हुआ, क्या हुआ? वह हर बार यही कहता कि ठीक कर रहा हूं।
परेशान होकर एक दिन सीधे उसकी छोटी-सी रेडियो क्लिनिक में पहुंचे तो मरीज का हाल देख कर दिल बैठ गया। हमने देखा, उसने मरीज का पुर्ज़ा-पुर्ज़ा अलग कर मेज पर रखा हुआ था और खुद हैरान होकर समझने की कोशिश कर रहा था कि कौनसा पुर्ज़ा कहां जोड़ा जाए। मैंने घबरा कर मरीज का हाल पूछा तो बोला, बस जोड़ने ही वाला था, अभी ठीक हो जाता है। हम बेबस होकर खड़े रहे और कहा- जल्दी जोड़ो और वापस करो। न जाने उसने कितने पुर्ज़े जोड़े, कितने छोड़े। फिर ऑन किया, बटन घुमाए, और..और मरीज की जैसे एक दर्द भरी कराह निकली।
मैंने झपट कर उसके हाथ से अपना यह बीमार रेडियो ले लिया। मरीज को गोद में संभाल कर पकड़ा। उस नीम-हकीम को पैसे दिए और घर लौट आए। सोचा, अब घर पर ही स्वास्थ्य लाभ कर लेगा।
यह आज भी हमारे पास है। एकाध स्टेशन पर इतने वर्षों बाद यह आज भी बोलता, गाता है, कराहते हुए ही सही। लगता है, हमारे प्यार में कर लेता है यह सब।
बहुत प्यार प्यारे कमांडर।
(हमारा वही प्यारा कमांडर रेडियो, फोटो : ॠचा मेवाड़ी)
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