सूख सूख पाटी कौथिग जौला।
नी सुखली त घौर मु रौला।।
हमारे समय मे दर्जा एक और दर्जा दो मे इसी प्रकार की तख्ती पर लिखा जाता था, जिसे पाटी कहते थे। स्कूल जाने से पहले इतवार के दिन पाटी को पोत्या और घोट्या से चमकाकर चिकना बनाया जाता था। जिसकी जितनी चिकनी पाटी उसका उतना सम्मान। पोत्या ज्यादातर मिटृटी तेल की चिमनी (ढिबरी) के धुंए की कालिख को पानी मे भिगाकर बनाया जाता था। इसे किसी पुराने कपड़े से पाटी पर लगाया जाता था। कभी-कभी पुरानी बैटरी के कार्बन का भी पोत्या बनाया जाता था।
पोत्या जब सूख जाता था तब पाटी पर घोट्या लगाया जाता था। घोट्या कांच की सीसी को पाटी पर रगड़ के दिया जाता था जो कि साधारणतया वैसलीन की खाली बोतल होती थी। तब वैसलीन कांच के बर्तन मे पैक होकर आती थी।
घोट्या-पोत्या के बाद पाटी के एक ओर रकील (लकीर) खींची जाती थी— दो नजदीक-नजदीक और एक दूर। दूर वाली अक्षर के लिए और पास वाली मात्राओं के लिए। ये रकील एक सूती धागे को दोनो हाथों से पकड़कर उसका बीच का हिस्सा कमेडे़ मे डुबाकर खींची जाती थी। कमेडा़ या कमेडू़ एक प्रकार की मिट्टी होती थी, जिसे पानी मे भिगाकर तैयार करते थे। कमेडा़ एक सफ़ेद रंग की मिट्टी होती थी। लेकिन उसके अभाव मे लाल मिट्टी, मुसदुंली की मिट्टी या किसी अन्य मिट्टी से भी लिख सकते थे। पाटी का दूसरे हिस्से मे प्राय रकील नही खींचते थे या खड़ी रकील खींचते थे।
कमेडू़ जिस बर्तन मे रखते थे उसे बोन्ख्या कहते थे। अलग-अलग जगहों पर नाम मे भिन्नता हो सकती है। जब कमेडे़ मे पानी समाप्त हो जाता था तो बोनख्या को कान मे लगाकर गाते थे—
"छपडी़ दिदा अफरू पाणी लीजा
मेरू पाणी दीजा।”
और बोन्ख्या मे पानी आ जाता था।
पाटी पे कलम से लिखा जाता था। कलम बांस या रिंगाल की हो, तो अति उत्तम अन्यथा भीमल, खड़िक आदि लकड़ियों की भी बना सकते थे।
फुटनोट: पाटी लड़ाई मे हथियार के रूप मे भी काम आती थी।
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